Friday, March 6, 2009

बागवानी की एक शाम.......

Thursday, June 5, 2008

बागवानी की एक शाम....

बड़े मुश्किल दौरसे गुज़र रही हूँ। चाहकेभी लिखनेकी शक्ति या इच्छा नही जुटा पा रही थी। कई विचार मन मे उथल पुथल मचाते जिन्हें शब्दंकित करना चाहती पर टाल देती।
परसों शाम मानसून पूर्व बौछार हाज़री लगा गयी । मेरी बेटी,जो अमेरिकासे आई हुई है,मुझसे काफ़ी बार कह चुकी थी कि मैं अपने टेरेस गार्डन मे कुछ बेलें लगाऊँ । वो जाके गमलेभी लेके आई। कुछ पौधों के नाम मैंने ही उसे लिख दिए थे।
वैसे मुझे बागवानी का हमेशा से शौक रहा है। कुछ सालों से परिवार कुछ इसतरह बिखरा कि, मेरे कई शौक मन मसोस के रह गए। लगता,किसके लिए खाना बनाऊँ ?किसके लिए फूल सजाऊँ?किसके लिए मेरे घरका सिंगार करूँ?किसके लिए अपनी बगिया निखारुं?
कई सारे बोनसाई के पौधे, जिन्होंने कई पारितोषिक जीते थे, मेरी इन्तेज़ारमे थे। मैं थी कि , पास जाके लौट आती। हर वक्त सोचती फिर कभी करुँगी इनकी गुडाई, फिर किसी दिन खाद दूँगी।
हाँ,आदतन, सिर्फ़ एक चीज़ मैं नियमसे ज़रूर करती और वो यह कि घर हमेशा बेहद साफ सुथरा रखती। परदे धोना, नए परदे लगना, हाथसे सिली, टुकड़े जोडके बनाई हुई चद्दरे बिछाना, दरियाँ धोके फैलाना, घरका कोना,कोना इस तरहसे सजाना मानो किसीके इन्तेज़ारमे नव वधु सजी सँवरी बैठी हो......अंदरसे उत्साह ना होते हुएभी....
पर ना अपनी कलाकी प्रति मन आकर्षित होता ना लेखनके प्रति। कुछ करनेका उत्साह आता तो वो देर शामको....वरना सुबह ऐसी घनी उदासी का आलम लिए आती कि लगता ये क्यों आयी ??अपने घरमे झाँकती किरने मुझे ऐसी लगती जैसे अँधेरा लेके आई हो।
परसों दोपहर जब बूँदें बरसने लगी, तो मैं खिड़कियाँ बंद करने दौड़ी। अचानक मेरा ध्यान उन खाली गमलोंकी ओर गया। यही वक्त है इनमे मिटटी डालनेका, पौधे लगानेका!!मैं दौडके पडोसमे गई, वहाँसे एक चम्पेकी ड़ाल ले आई। बस शुरुआत हो गई। भाईके घरसे गुलाबी चम्पेकी दो और डालें ले आई। गमले भरे गए। उनमे पानी डाला और चम्पेकी डाले लगा दी।
दूसरे दिन बिटिया कुछ और गमले और बेलोंके पौधे ले आई। कल और आज शाम को मेरी बागवानी जारी रही। सब हो जानेके बाद, टेरेस को खूब अच्छी तरहसे धो डाला। मुद्दतों बाद लगा कि मैंने अपने जीवनसे हटके किसी और ज़िंदगी की तरफ़ गौर किया हो.......
इन पौधोंको अब नई पत्तियाँ फूट पड़ेंगी। ड़ाले जड़े पकड़ लेंगीं । एक नई ज़िंदगी इनमे बसने आएगी, जिसे मैं रोज़ बढ़ते हुए देखूँगी, जैसे कि पहले देखा करती थी। अपने पुराने पौधोंकी मिटटी बदल डालूँगी....उनमेभी एक नए जीवनका संचार होगा...बेलोंको चढाने की तरकीबें सोचते हुए शाम गहरा गई।
ऐसा नही कि ,सुबह्की उदासी ख़त्म हुई,पर शाम की खुशनुमा याद लेके सुबह ज़रूर आएगी,ये विश्वास मनमे आ गया। येभी नही कि मेरी परेशानियाँ सुलझ गई। लेकिन लगा कि शायद ये दौरभी गुज़रही जायेगा। हो सकता है,जैसे कि पहलेभी हुआ था, कोई औरभी ज़्यादा मुश्किल दौर मेरे इन्तेज़ारमे हो। पर उसके बारेमे सोच के मनही मन डरते रहना ये कोई विकल्प तो नही, दिमागमे ये बातभी कौंध गई।
कलको बिटिया लौट जायेगी अपने घर, बरसात का मौसम बीत जाएगा, पर जब इन पौधोंको देखूँगी तो उसकी याद आँखें नम कर जायेगी। बिटिया,तुझे लाख, लाख दुआएँ!!

3 टिप्पणियाँ:

छत्तीसगढिया .. Sanjeeva Tiwari said...

पर्यावरण दिवस के शुभ अवसर पर आपकी भावनायें सुखद लगीं । धन्यवाद ।

Udan Tashtari said...

भावुक कर दिया आपने.

निश्चित ही कल सुनहरा होगा-आँखे नम तो याद से होना माँ का स्वभाव है किन्तु यही नव सृजन आपके चेहरे पर मुस्कराहट भी लायेंगे और बहुत सुकुन भी पहुँचायेंगे.

शुभकामनाऐं.

बाल किशन said...

सच सीधे शब्दों मे लिखी आपकी ये पोस्ट दिल को छू गई.
और बहुत ही सम सामायिक भी बनी है.
बधाई.


kumar Dheeraj has left a new comment on your post "बागवानी":

भावपूणॆ लेखन । आपने बागबानी से दिल के उस लम्हे को याद कर दिया जो मेरे जीवन की एक त्रासदी है । खैर मनुष्य के जीवन में कुछ ऐसी घटनाए हो जाती है जो जीवन भर सालता रहता है । आपने वहुत सुन्दर टिप्पणी लिखी । शुक्रिया


3 comments:

  1. अपने पुराने पौधोंकी मिटटी बदल डालूँगी....उनमेभी एक नए जीवनका संचार होगा...बेलोंको चढाने की तरकीबें सोचते हुए शाम गहरा गई।
    ऐसा नही कि ,सुबह्की उदासी ख़त्म हुई,पर शाम की खुशनुमा याद लेके सुबह ज़रूर आएगी,ये विश्वास मनमे आ गया। येभी नही कि मेरी परेशानियाँ सुलझ गई। लेकिन लगा कि शायद ये दौरभी गुज़रही जायेगा।

    bahoot hi bhawpurn rachana.
    rishton ki, samajik, pariwaarik jiwan ki achhi bagwaani prastut ki

    khali panne

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  2. aapke sujhaav ke vliye shukriya..hum koshish kar rahen hai..jarurat padi to kahenge...dhanyavaad...

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  3. bhaav se bhar diya aapki lekhni ne
    waah waah kya baat hai !

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