Thursday, June 4, 2009

आओ ना, बरखा रानी...!

बोहोत दिनों के बाद इस ब्लॉग पे लिखने बैठी हूँ...दर असल, रुकी थी, कि, बगीचेकी चंद तस्वीरें, लेखके साथ, साथ लगा दूँ, और slides भी...लेकिन ये किसी न किसी कारण हो न पाया...

सर्दियों में खिलने वाले फूल ख़त्म हो गए,तो उन गमलों की मिट्टी मैंने पूरी गर्मीभर सुखा ली। कुछ रोज़ पूर्व, जो बड़े गमलें हैं, जिनमे मैंने और बिटियाने बेलें लगाईं थीं, उसमे गोबर का खाद मिलाके पलट दी....उन पौधों में मानो एक नयी जान आ गयी !

"बागवानी की एक शाम", इस लेखको जब पोस्ट किया तब, एक चम्पे की दाल लगाई थी...उसपे पहली बार फूल भी खिले हैं...उसकी भी तस्वीर डालना चाह रही थी...

अब फिर एक बार बौछारों के लिए रुकी हूँ...फिर एकबार छोटे गमले, नयी मिट्टी के इंतज़ार में हैं...!
उसी आलेख में मैंने लिखा था," हो सकता है, इससेभी बड़ा कोई सदमा मेरी इंतज़ार में हो.."और सच में उससे भी भयंकर एक सदमा मुझपे आ पडा...लेकिन बहारें, आती जाती रहीँ....हाँ, येभी एक सत्य है,कि, जब, जब मै, सदमों से गुज़री, चंद पौधों ने या तो दम तोड़ दिया, या वोभी मेरे साथ, साथ, सदमों से गुज़रे...!

जब मानसिक कष्ट झेल रही थी,तो, तस्वीरें खींचने के लिए किसे कहती? मनही नही होता..ना उस वक़्त तस्वीरें एहमियत रखतीं...वरना, वाकई, आँखों देखा हाल, कहते हैं जिसे, अपने पाठकों को उससे वाबस्ता कराती ....कि मेरे साथ मेरा ये "परिवार" भी खामोशी से दर्द झेलता रहा...और जिन्हें ये दर्द मंज़ूर ना हुआ, बरदाश्त ना हुआ, वो मुझे छोड़, चल बसे...

मै अपने पाठकों से आग्रह करूँगी, कि, बागवानी को लिखे गर, जिसे जो सवाल, हो मुझसे ज़रूर पूछें, मै हल निकालने की कोशिश ज़रूर करूँगी....हर जगह की मिट्टी और मौसम के अनुसार हल भी अलग, अलग ही होंगे...सबसे ज़रूरी बात ये होती है,कि, पौधों को रोज़ एक निगाह की ज़रूरत होती ही होती है...

सिर्फ़ पानी मिल रहा है या नही, इतनाही देखना काफी नही... ...बल्कि, कहीँ ज्यादा पानी तो नही पड़ रहा ये देखना भी ज़रूरी होता है...जिन्हें कम पानी चाहिए, ऐसे गमलों को अलगसे रखा जाना चाहिए....वरना उनपे फूलों के बदले पत्तेही निकलते रहेंगे!! या जो पौधे "succulent" इस वर्ग में आते हैं, उन्हें भी दिनमे दो बार पानी नही चाहिए...मेरा बगीचा छत पे है, तथा, बोन्साय के काफी पौधे हैं, जिन्हें, गमला छोटा होने के कारण दिन में दो बार पानी आवश्यक होता है...

कई पौधों की जड़ें, गमले के, नीचे,अतिरिक्त पानी निकल जानेके लिए जो छिद्र होते हैं, उनमेसे,बाहर निकल आती हैं...ऐसेमे गर तपी हुई छत से उनका संपर्क आता है, तो पौधे को हानी हो सकती है। इसपे एक आसान उपाय मैंने पाया...मिट्टी के बने, गोल आकार के थाली नुमा गमले/बर्तन मिलते हैं...उन्हें उलटा करके मै हर ऐसे गमलेके नीचे टिका देती हूँ....उपरसे हरी नेट अप्रैल तथा मई के महीनों में ज़रूरी होती है....जून के माह में पहली बौछार पड़ते ही नेट को निकाल तह बना रख लेती हूँ....गर फट गयी हो, तो रखने से पूर्व, अपनी सिलाई की मशीन छत पे निकाल सी लेती हूँ...और फिर धोके, रखवा लेती हूँ...

अब और क्या लिखूँ? "बरखा रानी ! आओ ना, आ जाओना, इतना भी तरसाओ ना, ...के इंतज़ार है एक 'शम्म' को तुम्हारा...के इंतज़ार है, इस कुदरत के हर पौधे, हर बूटेको, तुम्हारा... के तुमबिन सरजन हार कौन है इनका?के तुमबिन पालन हार कौन है इनका?"

1 comment:

  1. प्रिय शम्मअ जी ,
    जय हिंद
    देखिएगा कि आपके नाम की स्पेलिंग मैंने सही लिखी है कि नहीं
    आप बागवानी में रूचि रखती हैं ,अच्छा लगा ,
    यदि आपको जैविक खाद तथा जैविक पेस्टिसाइड चाहिए होगा तो बताइयेगा ,मेरा सारा जोर जैविक खेती की तरफ रहता है
    अगर आप अपने अन्नदाता किसानों और धरती माँ का कर्ज उतारना चाहते हैं तो कृपया मेरासमस्त पर पधारिये और जानकारियों का खुद भी लाभ उठाएं तथा किसानों एवं रोगियों को भी लाभान्वित करें

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